Thursday, October 8, 2015

बस एक शाम की हरि इच्छा ?


श्री राधे !

अपने आस पास आयोजित होने वाले धार्मिक आयोजनों के शीर्षक और समय पर एक नजर मारे, शीर्षक कुछ इस प्रकार होंगे
एक शाम राधा माधव के नाम
नव वर्ष की एक प्रातः और एक शाम श्री राम के नाम
दीपावली कि पर्व संध्या बिहारी जी के संग
कुछ पल हरि भजन के

आप आप ये बताये कि उसशाम से पहले वाली या बाद वाली शाम का राधा माधव जी से कोई सम्बन्ध नही?
सिर्फ नव वर्ष कि प्रातः और शाम ही श्री राम के नाम?
ये तो कुछ ऐसा प्रतीत हुआ जैसे हम अपने सर्वेसर्वा प्राणधन पर कोई एहसान कर रहे हो | जिस परमात्मा ने हम को मानव जन्म दिया कि हम हर समय उसके नाम में मग्न रहे, परन्तु हम ऐसे शीर्षक से भजन संध्या का आयोजन कर के एक शहं में ही अपने अगले पिछले सब जन्मो कर्मो का पुण्य प्राप्त करना चाहते है |

बात सिर्फ यही तक नही, अब आयोजन के समय पर गौर कीजिये
से 7 बजे से हरि इच्छा तक
प्रातः 10  बजे से श्री राम इच्छा तक

अब आप सोचिये कि आप का पुत्र आप की टाँगे दबा रहा हो या कोई मित्र आपकी प्रशंसा कर रहा हो तो मन ही मन आप चाहेंगे की आप पूरा दिन लेटे  रहे और चरण दबवाने का सुख लेते रहे या अमुक मित्र से तारीफ सुनते रहे, हालंकि दैन्यता दिखने के लिए बाहर से आप बेटे से कहेंगे कि बस अब आराम करो या मित्र से कहेंगे की में इस काबिल नही परन्तु मन में इच्छ यही होगी कि ये सब चलता रहे तो क्या हमारे ब्र्जेंद्रन्न्दन कभी चाहेंगे की उनके निमित जो आप भजन संध्या, जाप आदि कर रहे वो कभी रुके ? हम ही जब थक जायेंगे या किसी भजन गायक कि बुकिंग का समय समाप्त हो जाएगा या और नही तो सुनने वाले ही आधे पंडाल से गायब हो जायेंगे तो हम कीर्तन को विश्राम करा देंगे ये इच्छा तो हमारी ही हुई फिर और नाम हरि इच्छा! हमे तो ये सब शब्द एक शाम, हरि इच्छा बोलने और सुनने  बोलने और लिखने में ही आनंद मिलता है|

मेरा तो बस इतना सा आग्रह है की ठाकुर जी कि स्तुति को इस तरह के शीर्षक और समय में केवल लोकधर्म या लोक आचरण में मत बांधिए

जय श्री राधे !!

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